Indian person sitting alone in a quiet cafe, thinking before speaking

डर लगता है कि कहीं कोई गलत ना समझ ले — क्यों होता है ऐसा?

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Written by Labid

04/11/2025

कभी ऐसा हुआ है? आप कुछ कहना चाहते हैं, बात बिलकुल साफ है…
लेकिन दिल में अचानक एक रुकावट आ जाती है —
“अगर सामने वाले ने गलत समझ लिया तो?”

यह सिर्फ शर्म नहीं है। यह सिर्फ nervousness भी नहीं है।
यह आज की fast-judging दुनिया में एक बहुत common emotional habit है — और इसके पीछे मनोवैज्ञानिक वजहें हैं, जिन्हें समझना जरूरी है।

यह डर आपके अंदर insecurity से ज़्यादा sensitivity दिखाता है — आप दूसरों को hurt करने या गलत समझे जाने से बचना चाहते हैं।

क्यों लगता है कि लोग गलत समझ लेंगे?

1. बचपन की conditioning

हममें से ज़्यादातर लोग ऐसे माहौल में बड़े हुए हैं जहाँ समझदारी से बोलना, गलत शब्दों से बचना, और दूसरों की राय की चिंता करना एक आदत बना दी गई थी।

बचपन से सुनाई गई बातें जैसे —
“कुछ भी मत बोल दिया करो”,
“पहले सोचो, फिर बोलो”,
“लोग क्या कहेंगे” —

इन सबने धीरे-धीरे हमारे दिमाग में एक automatic filter डाल दिया। इसी कारण बड़े होने पर भी हमें यह लगता रहता है कि हमें हर बात बहुत carefully बोलनी है, नहीं तो लोग गलत impression ले लेंगे।

यानी यह डर अचानक नहीं आया — यह सालों की conditioning का परिणाम है।

2. दूसरों की भावनाओं का ख्याल रखना

Indian person thinking with care, emotionally sensitive expression

कई लोग स्वभाव से ही बेहद considerate और sensitive होते हैं। वे नहीं चाहते कि उनकी वजह से किसी को तकलीफ पहुंचे या किसी के मन में उनके बारे में गलत छवि बने।

ये वही लोग हैं जो बोलने से पहले यह सोच लेते हैं कि सामने वाले को कैसा लगेगा, वो क्या सोचेगा, और कहीं उसे गलत न लगे।

यह sensitivity एक खूबसूरत गुण है, क्योंकि आज की दुनिया में बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो genuinely दूसरों की भावनाओं का ख्याल रखते हैं। पर हाँ, कभी-कभी यही गुण अंदर एक तरह की hesitation भी पैदा कर देता है।

3. पुराने अनुभवों का असर

अगर पहले कभी किसी ने आपकी बात का गलत मतलब निकाल दिया हो, आपकी बात को twist कर दिया हो, या बिना वजह आपको गलत साबित करने की कोशिश की हो — तो वह अनुभव दिमाग में बस जाता है।

फिर भविष्य में ज़रा सा भी similar situation आती है, तो दिमाग खुद-ब-खुद कहने लगता है:
“सावधान रहो, फिर से गलत मत समझ लिया जाए।”

ये mind का self-defense system है। वह आपको protect करना चाहता है, इसलिए खुलकर बात करने में hesitation पैदा होती है।

अगर पहले कभी किसी ने आपकी बात का गलत मतलब निकाल दिया हो, आपकी बात को twist किया हो या बिना वजह आपको गलत साबित करने की कोशिश की हो — तो वह अनुभव दिमाग में बस जाता है। फिर जब similar situation आती है, दिमाग खुद-ब-खुद कहता है: “सावधान रहो, फिर से गलत मत समझ लिया जाए।” ऐसा व्यवहार उन लोगों में भी दिखता है जो दिल से माफ कर देते हैं, लेकिन बातें याद रखते हैं — जैसे इस लेख में समझाया गया है: जो लोग माफ कर देते हैं, पर भूलते नहीं

4. खुद को prove करने का दबाव

जब self-worth थोड़ी कमजोर होती है या हम खुद को लेकर पूरी तरह confident नहीं होते, तब naturally दूसरों की नजर में perfect दिखने की कोशिश बढ़ जाती है।

ऐसे में हम यह सोचने लगते हैं —
“मैं ठीक लगूं”,
“मेरी बात सही समझी जाए”,
“कोई गलत impression न बना ले।”

इस तरह की सोच धीरे-धीरे normal बातचीत को भी mentally exhausting बना देती है।

5. Overthinking की आदत होना

कुछ लोगों का दिमाग naturally गहराई से सोचता है, situations को analyze करता है, और हर possibility पर विचार करता है।

ऐसे लोग practical से ज्यादा emotional और thoughtful होते हैं। वे सोचते हैं —
“अगर मैंने ऐसा कहा तो क्या होगा?”
“वो ऐसा सोच ले तो?”

और इसी सोच-सोच में बात simple नहीं रहती, बल्कि anxiety पैदा कर देती है।

इस डर को कैसे handle किया जाए?

Indian person listening with empathy and understanding

💛 खुद को समझें और space दें

यह डर होना इंसानी है। हर किसी को कभी न कभी लगता है कि लोग क्या सोचेंगे या बातें गलत समझ लेंगे।
अपने आप पर दबाव डालने की बजाय इसे समझिए। यह personality का हिस्सा है, कोई कमी नहीं।
जैसे-जैसे आप situations face करेंगे, आपका confidence naturally बढ़ता जाएगा और यह डर धीरे-धीरे कम होता जाएगा।

🗣️ हर बात justify करने की आदत छोड़ें

कई बार हमें लगता है कि अगर हम हर बात विस्तार से समझाएँगे, तभी लोग हमें ठीक से समझ पाएँगे।
लेकिन सच्चाई यह है कि simple और clear communication अक्सर ज्यादा effective होता है।
हर बार खुद को prove करने की ज़रूरत नहीं होती — कई conversations normal ही रहती हैं, और रहनी चाहिए।

🤍 अपनी intention पर भरोसा करें

अगर आपका इरादा साफ है और बात honest है, तो बार-बार guilty महसूस करने या defensiveness में आने का कोई मतलब नहीं है।
हर इंसान आपकी बात पूरी तरह समझे — यह जरूरी नहीं।
कभी-कभी आपको अपने दिल की clarity ही enough होती है।

🧩 धीरे-धीरे practice करें

Confidence अचानक नहीं आता। छोटे-छोटे situations में खुद को express करने की practice करें —
जैसे casual chats, family discussions, या दोस्तों के बीच सामान्य बातें।
आपको हर जगह perfectly polished नहीं दिखना, बस real रहना है।
कई बार normal होना ही सबसे बड़ी strength होता है।

Author’s Thought

गलत समझे जाने का डर आमतौर पर उन्हीं लोगों को होता है जिनका दिल ईमानदार होता है, जो रिश्तों को value देते हैं, और जिनके अंदर sensitivity होती है। यह आपकी weakness नहीं, बल्कि emotional intelligence का संकेत है।

बस फर्क यह है कि जितनी understanding आप दूसरों को देते हैं, उतनी खुद को भी दें। समय के साथ यह hesitation कम हो जाएगी और उसकी जगह एक शांत confidence आ जाएगा — कि आपकी नीयत और आपका दिल दोनों साफ हैं, और वही सबसे ज्यादा मायने रखता है।

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I’m Abu Labid, a lifestyle writer from India exploring how philosophy, psychology, and everyday life intertwine.
Through DesiVibe, I share reflections on self-growth, mindfulness, and balance — inviting readers to slow down, reflect, and reconnect with what truly matters.

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